सूर्य चन्द्र ज्योतिष शास्त्र की प्रत्यक्ष गणना है। वेदो में बताया कि ज्योतिष शास्त्र ‘‘वेदस्य निर्मल चक्षुः‘‘ अर्थात ज्योतिष शास्त्र तो वेदों की निर्मल आँख है। भारतीय संस्कृति में ज्योतिष बहुत पुराना एवं जटिल शास्त्र है, जिसमें वैदिक ज्ञान का अध्ययन होता है । ज्योतिष के आधार पर शुभाशुभ फल ग्रह नक्षत्रों की स्थिति विशेष से बतलाया जाता है। इसके लिये ज्योतिष गणित द्वारा ग्रह तथा तारों की स्थिति ज्ञात की जाती है। ग्रह तथा नक्षत्रों की स्थिति प्रति क्षण परिवर्तनषील है, अतएव प्रति क्षण में होने वाली घटनाओं पर ग्रह तथा नक्षत्रों का प्रभाव भी विभिन्न प्रकार का पड़ता है। वास्तविक ग्रह स्थिति ज्ञात करने के लिए गणित ज्योतिष ही हमारा सहायक है तथा फलित ज्योतिष निष्कर्ष होता है।
वैदिक काल में हमारे ऋषि मुनियों ने 4 वेदों की रचना की, वे चार वेद हैः- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद। वेद प्राचीन भारत के पवित्र साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। वेदों को पढ़ाने के लिए छः अंगों - शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द और ज्योतिष के अध्ययन होता था। ज्योतिष शास्त्र एक वैदिक कालीन विद्या है, जिसमें ग्रहों की चाल और प्रभाव से मनुष्य के भविष्यफल का अध्ययन किया जाता है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि और राहु-केतु को नवग्रहों की मान्यता दी गई है। ये सभी ग्रह गोचर करते हुए प्रत्येक राशि में कुछ समय काल के लिए विराजमान हो जाते हैं और इन्हीं के प्रभाव के विश्लेषण से प्रत्येक कुंडली के राशिफल की गणना की जाती है। जन्म कुंडली में हर जातक के जीवन का सार छुपा होता है।
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